Mehfil

Sunday, April 27, 2008

कितनी अजीब बात ...

क्यों इतनी अजीब है ज़िंदगी
के कोई कभी समझ न पाए
कई बार थामना चाहा इससे
पर यह मुई तो चलती ही जाए...

पास आता है कोई
तो डर सा लगता है
दूर चला जाए वोही
तो अजीब दर्द होता है

जब खुशिसे झूमता है दिल
तो नज़र आता है दुनिया मे भरा गम
उसी दुनिया के जश्न चुभतेहें आखोंमें
जब अपने दुःख मे डूबते हैं हम ...

नींद के इंतज़ार में रातें
चैन के इंतज़ार में दिन
मंजिलोंके इंतज़ार में रास्ते
और काफिले भटकते रास्तोंके बिन

अनकही आरजू अनसुनी रहे
कुछ ऐसे ही सारे हालात है
के ज़िंदगी अपनी होकर अपनी नही
ये कितनी अजीब बात है ...

- प्रदन्या जोशी